Odissi Dance (ओडिसी नृत्य )
परिचय एवं इतिहास
"ओडिसी" भारत के उड़ीसा राज्य की शास्त्रीय नृत्य शैली है। पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर ओडिसी को सर्वाधिक प्राचीन भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली माना गया है। उड़ीसा की रानी गुम्फा में मिली मूर्तियां, नृत्यमय मुद्रा का प्रथम प्रमाण हैं। जिनमे पार्श्व संगीत के वृन्द को भी साथ में दर्शाया गया है। विद्वानों ने इस गुफा और इसमें उकेरी गयी मूर्तियों का समय नाट्य शाश्त्र के भी पूर्व का बताया है।
नाट्य शाश्त्र नृत्य के चार क्षेत्रीय प्रकारों का उल्लेख करता है।
1. अवन्ति 2. पांचाली 3. दक्षिणात्य 4. औड्रमागधी
इसी ग्रन्थ के आधार पर यह पता चलता है कि, औड्रमागधी शैली का प्रचार अंग, बंग, कलिंग, वत्स, औड्र, मगध और भारत के पूर्वी अंचल के कुछ क्षेत्रों में था। कलिंग एवं औड्र वर्तमान उड़ीसा के अंतर्गत आते हैं। अतः ऐसी संभावना लगती है कि, भारत के इस क्षेत्र में लगभग 2000 वर्ष पूर्व ही नृत्य की एक शैली अपना स्वरुप ले चुकी थी।
इसा पूर्व दूसरी शती का ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ एक विवरण उपलब्ध है जो उड़ीसा में नृत्य होने को प्रमाणित करता है यह जैन शासक खारवेल के समय का है। उदय गिरि
की हाथी गुम्फा में मिले एक लेख से यह पता चलता है की खारवेल ने जो स्वयं नर्तक एवं संगीतकार था, अपने शासन के तीसरे वर्ष में अपनी प्रजा के मनोरंजन हेतु तांडव एवं अभिनय का आयोजन करवाया था। खारवेल के पश्चात कई शताब्दियों तक उड़ीसा का राजनैतिक इतिहास भी अन्धकार में होने के कारण उड़ीसा के कोई सन्दर्भ उपलब्ध नहीं होते।
एक लम्बे अंतराल के बाद भुवनेश्वर के ब्रह्मेश्वर में पुनः एक लेख मिलता है जिसमे कई नर्तकियों को मंदिर में अर्पित का विवरण मिलता है। मंदिरों के अनुष्ठानों से सम्बद्ध नर्तकियां "महारी" कह कर जानी जाती थी। उद्योतकेशरी के समय से (जो लगभग ई० सन नौवीं शताब्दी का रहा होगा) नर्तकियों के अर्पित किये जाने के प्रमाण निकट भूत तक मिलते रहे हैं।
गंग राजवंश के शासक चोळ गंग देव के सत्ता में आने पर पूरी के प्रसिद्द जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ। इन्होने महारियों को मंदिर में सेवाएं प्रदान करने के लिए नियुक्त किया। 1194 ई0 में जब अनंगभीमदेव का शासन काल आया, उसने अनेक नए मंदिरों को बनवाने के साथ ही जगन्नाथ मंदिर के विस्तार के रूप में नट मंडप को भी बनवाया, जहां कि महारियों एवं संगीतज्ञों की कला का प्रदर्शन होता रहा।
1435 ई0 में कपिलेन्द्र देव से सूर्यवंश का शासन स्थापित हुआ। उसने जगन्नाथ मंदिर में दिन में दो बार महारियों के नृत्य की प्रथा आरम्भ की तथा मंदिर के दैनिक अनुष्ठानो के अंग के रूप में जयदेव के गीत-गोविन्द के गान की परंपरा आरम्भ करवाई। कपिलेन्द्र देव के उत्तराधिकारी के रूप में उसका पुत्र पुरुषोत्तम देव तथा उसके बाद प्रताप रूद्र देव राजगद्दी पर बैठा, उसने आदेश दिया कि, जगन्नाथ मंदिर में गीत-गोविन्द के अतिरिक्त किसी अन्य पद का गान नहीं होगा।
लगभग 1600 ई0 के आस पास रामचंद्र देव के समय में महारियों की नियुक्ति राजसभा में ही होने लगी। रामचंद्र देव के समय में ही लड़कों का एक ऐसा समूह प्रकाश में आया जो "गोटिपुआ" के नाम से जाना गया। ये लड़के नर्तकियों के सामान वेशभूषा धारण करके मंदिरों में तथा जनता के समक्ष भी नृत्य प्रस्तुत किया करते थे। इन गोटिपुआ का संरक्षण अखाड़ों द्वारा होता था। इनका नृत्य अधिक स्फूर्ति प्रधान एवं करतबों से युक्त था। ओडिसी शैली ने अपने विकास के क्रम में गोटिपुआ नृत्य की अनेक विशेषताओं को अपनाया है।
ओडिसी नृत्य से सम्बद्ध कुछ एक ग्रंथों की भी रचना हुई है जिसमे महेश्वर महापात्र की अभिनय चन्द्रिका महत्त्वपूर्ण है। ये संस्कृत भाषा में है किन्तु उड़िया लिपि में लिखा गया है। इसके अतिरिक्त नारायण देव गजपति द्वारा लिखा गया "संगीत नारायण नृत्यखण्ड", रघुनाथ रथ की "नृत्य कौमुदी", "नाट्य मनोरमा" तथा जदुनाथ सिन्हा द्वारा रचित "अभिनय दर्पण" भी महत्त्वपूर्ण हैं।
नृत्य की तकनीक
तकनीकी दृष्टि से ओडिसी, नाट्यशास्त्र के नियमों का पालन करता है। इस नृत्य में मानव शरीर को तीन अंगों में बांटा गया है। ये तीन अंग हैं सिर, पार्श्व एवं नितम्ब। इसकी तकनीक भार के आसमान विभाजन पर आधारित है। नितम्बों का चलन तथा त्रिभङ्ग जो अन्य शास्त्रीय नृत्य शैलियों में कम ही दिखाई देता है वह इस नृत्य शैली की विशेषता है। अन्य भारतीय नृत्य शैलियों के सामान ही इस नृत्य शैली की आरंभिक स्थिति समपाद ही है जो बाद में आयताकार रूप ले लेती है और चौक के नाम से जानी जाती है। इस अवस्था में भार का सामान विभाजन होता है और पैरों के बीच की दूरी चार ताल या बित्ता होती है। "मीनडंडी", "वर्तुल", "घेरा" और द्विमुख आदि इस नृत्य शैली आधारभूत मुद्राएँ हैं। बैठने की मुद्रा को "बैठ" तथा चलने को "चाली" कहा जाता है।
कार्यक्रम के अंश
वेशभूषा
कलाकार
Nice article
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery knowledgeable article
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteThanks for sharing such a knowledgeable information
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