Kuchipudi dance

Kuchipudi dance

कुचिपुड़ी नृत्य 

कुचिपुड़ी भक्तिधारा से निकली एक शास्त्रीय नृत्य शैली है। यह भारत के आंध्र प्रदेश से सम्बंधित मानी जाती है, हालांकि वर्तमान समय में समस्त भारतवर्ष और दुनिया के कई हिस्सों में इस शैली को जाना जाता है परन्तु इसका मूल दक्षिण भारत ही है। कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति किस समय हुई इसके विषय में कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है परन्तु ऐसी मान्यता है कि, 18वीं शती में भक्तिवाद के प्रचार के साथ ये अस्तित्व में आया। उस समय जनसामान्य के   बीच प्रचलित संगीत में भजन, कीर्तन, हरिकथा, कालक्षेप इत्यादि की ही कड़ी में कुचिपुड़ी भी लोगों तक संगीत और आध्यात्म के मिले जुले माध्यम के रूप में पंहुचा होगा ऐसी मान्यता है। 

Kuchipudi performance in BHU varanasi


कुचिपुड़ी नृत्य के विकास में श्री तीर्थ नारायण यति और उनके शिष्य सिद्धेन्द्र योगी का अत्यंत महत्तवपूर्ण योगदान है।तीर्थ नारायण बचपन से ही नृत्य-सगीत के शौक़ीन थे और वे भगवान् श्री कृष्ण के भक्त भी थे। उन्हें भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं का गान करना अच्छा लगता था। उन्होंने एक म्यूजिकल ओपेरा की रचना की जिसका नाम कृष्ण लीला तरंगिणी रखा। अपने कुछ शिष्यों को उन्होंने प्रशिक्षण दिया और मंदिर में नृत्य  एवं संगीत के माध्यम से इसका प्रदर्शन करवाया। इनके शिष्य सिद्धेन्द्र योगी भी श्री भक्त थे और उन्होंने "पारिजातापहर" नाम से नृत्य की रचना की थी। इस नृत्य रचना के लिए वे कुचेलपुरम नामक गाँव गए और वंहा उन्होंने कुछ बच्चों को इसकी शिक्षा दी तथा उनसे यह वचन दिलवाया की वे लोग साल में एक बार इस नृत्य को अवश्य प्रस्तुत करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियां भी ऐसा ही करेंगी। आज भी कुचेलपुरम में ''पारिजातापहार'' का मंचन हर वर्ष किया जाता है।  

Kuchipudi dancer

कुचेलपुरम एक छोटा गांव है जिसका नाम बाद में कुचिपुड़ी  हो गया। सिद्धेन्द्र योगी द्वारा कुचिपुड़ी गांव में  नाटिका की रचना सर्वप्रथम की गयी थी जो इस गाँव की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी थी अतः इस नृत्य नाटिका का नाम भी कुचिपुड़ी गांव के नाम पर ही कुचिपुड़ी रख दिया गया। बाद में यह नृत्य आंध्र प्रदेश के अन्य भागो में भी प्रचारित हुआ। पहले नृत्य नाटिकाओं का मंचन स्थानीय मंदिर  ही जमीन पर हुआ करता था। कुचिपुड़ी गांव में रामलिंगेश्वर मंदिर है जिसके सामने इसकी प्रस्तुति हुआ करती थी, बाद में मंदिर के बहार नृत्य प्रस्तुति के लिए मंच बनवाया जाने लगा। यह नृत्य नाटिका अट्टभागवतम  के नाम से भी जानी जाती है। कुचिपुड़ी की नाटिकाएं तेलुगु भाषा में होती हैं। इसमें अभिनेता स्वयं संवाद बोलते हैं और गीत गाते हैं। कुचिपुड़ी में ऐसे भी नृत्य प्रकार हैं जिनका एकल प्रदर्शन भी  है। इस  भी नृत्त, नृत्य एवं नाट्य तीनो पक्ष विद्यमान हैं। अडवु, तीरमानं आदि नृत्त का उदहारण हैं इनका प्रयोग अधिकतर नाटकों के बीच में होता है। नाटक की कथावस्तु से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता। अन्य नृत्य शैलियों की भांति यहाँ भी नृत्त पक्ष नर्तक की दक्षता प्रदर्शित करते हैं तथा आनंद की सृष्टि करते हैं।

नृत्त के अंशों (Items) में '' पूजा नृत्य'', जथीस्वरम, तिल्लाना, एवं कोनाक्कोल आते हैं। पूजा नृत्य समर्पण की भावना से कार्यक्रम के आरम्भ में किया जाता है। और भरतनाट्यम के अलारिपु से समानता रखता है। अलारिपु की अपेक्षा यह काफी लम्बा होता है। कभी-कभी नटराज की स्तुति में श्लोक भी पढ़ा जाता है, जिस पर अभिनय होता है। जथीस्वरम और तिल्लाना भरतनाट्यम के जाथीस्वरम और तिल्लाना के सामान होते हैं। ''कोनक्कोल'' मुख्यतः पैरों के सञ्चालन (Foot work) पर आधारित होता है। हालांकि अन्य अंगों की भी क्रियाएं होती हैं लेकिन उनका विशेष महत्व नहीं है। इसमें संगतकार ताल के बोलों का उच्चारण करते हैं और ताल के अनुसार ही नर्तक उसे विविध प्रकार से प्रस्तुत करते हैं। 

Kuchipudi dance pose

नृत्य के आइटम्स में शब्दम, श्लोकं एवं पदं होते हैं। ये वो items हैं जो स्वतंत्र रूप से भी किये जाते हैं। शब्दम भरतनाट्यम की रचना के अनुसार ही किसी देवता अथवा संरक्षक राजा की स्तुति में किया जाता है। इनके प्रसिद्ध शब्दम हैं कृष्ण, मंडूक एवं दशावतार। ''श्लोक'' भी अभिनय का अंश है। इस शैली की  है की श्लोक का अभिनय बैठ कर करते हैं। अधिकतर वियोग श्रृंगार बताने वाले श्लोक किये जाते हैं। पदम् भी अधिकतर श्रृंगारिक होते हैं और भरतनाट्यम के पदम के सदृश ही होते हैं। अभिनय के लिए कभी-कभी जयदेव के गीत गोविन्द की अष्टपदी भी ली जाती है।  

तीर्थ नारायण यति की ''कृष्ण लीला तरंगिणी'' के अंश नृत्य नाटिका के अतिरिक्त स्वतंत्र रूप से भी किये जाते हैं। कृष्ण के बाल्यकाल का चरित्र ''बाल-गोपाल तरंगम'' के नाम से विख्यात है। सिद्धेन्द्र योगी द्वारा रचित ''पारिजातापहर'' ''भामाकलापम'' नाम से प्रसिद्ध  है। 

Kuchipudi by dr. Vedantam radheshyaam

कुचिपुड़ी में odd beats पर पैरों का जोर देना और चलते समय खास तरीके का झटका इस शैली की खासियत है। कुचिपुड़ी में सूत्रधार का रोल महत्त्वपूर्ण है। वैसे इन प्रस्तुतियों में मंच के सामने पर्दा नहीं रहता किन्तु महत्वपूर्ण पात्रों का मंच पर प्रथम प्रवेश पर्दे  के पीछे से ही होता है जिसमें दोनों तरफ से दो लोग पकड़े रहते हैं। इस पर्दे के ऊपरी भाग के ऊपर से पात्र का चेहरा और निचले भाग के नीचे से उसके पैर दीखते हैं। पर्दे के पीछे से ही ये पात्र कुछ movements करते हैं बाद में पर्दा हटाया जाता है। 

Kuchipudi dance

इसकी वेशभूषा में सत्यभामा की चोटी विशेष बनती है। स्त्री पात्र साड़ी और ब्लाऊज़ पहनते हैं। पुरुष पात्र धोती, रंगीन कोट तथा मुकुट पहनते हैं। इसके आभूषण विशेष प्रकार की नरम लकड़ी के बने होते हैं जो आंध्र प्रदेश में पायी जाती है। यह वजन में काफी हलकी होती है। 

इसका संगीत कर्नाटकी होता है। सूत्रधार गाने के साथ मंजीरा बजता है मृदंग, क्लैरिओनेट और वॉयलिन आदि वाद्य यन्त्र प्रयुक्त होते हैं। 

Madhuryaa


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