Manipuri Dance Introduction (मणिपुरी : संक्षिप्त परिचय)
मणिपुर वासियों सम्पूर्ण जीवन संगीत एवं नृत्यमय है, जहां जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे सामाजिक एवं धार्मिक उत्सव संगीत एवं नृत्य के साथ मनाये जाते हैं। मणिपुर में बलि देवता एवं गृह देवता के पूजा के साथ ही '' माइबिया '' के नृत्य की परंपरा करीब 2000 वर्ष पुरानी है।
पारम्परिक एवं धार्मिक नृत्यों के अंतर्गत " माइबा " एवं '' माईबी '' ( क्रमशः पुजारी एवं पुजारिन ) द्वारा किया जाने वाला नृत्य " माईबी जागोई " आता है। यह बिलकुल श्वेत वस्त्रों में देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त स्थानीय दन्त कथाओं पर आधारित नृत्य युगल रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं जो कि, '' लाइ हरोबा " और "खम्बा तोइबी " नाम से जाने जाते हैं। मेइती समुदाय में प्रचलित इन धार्मिक नृत्यों पर शैव मत का प्रभाव है।
18 वीं शती में जब वहाँ के राजा गरीब निवास ने वैष्णव धर्म अपनाने की आधिकारिक घोषणा की, तब से संकीर्तन और रास लीला का प्रचलन हो गया और राधा-कृष्ण की प्रेम कथाएं एवं कृष्ण बाल-लीला के वर्णन को प्रधानता मिली। इसके पूर्व ही मणिपुर को वैष्णव संप्रदाय की ओर आकर्षित करने का श्रेय बंगाल के भक्त संत दास को जाता है। वहाँ रात में मंडपों में भक्त करीब 8-10 रास-लीला करते हैं। रास-लीला में गाये जाने वाले गीत मुख्यतः भक्त कवि चण्डीदास, विद्यापति, जयदेव, नरोत्तमदास आदि के होते हैं और भाषा प्रायः ब्रज, संस्कृत, बंगाली होती है। अब मणिपुरी भाषा में भी इसके पद मिलते हैं। इन रास-लीलाओं में अधिकतर ब्रह्म ताल, विष्णु ताल तथा जयदीप आदि प्रयुक्त होते हैं। संकीर्तन में अधिक क्लिष्ट तालों का प्रयोग होता है। यद्यपि वैष्णव संप्रदाय के प्रभाव से मणिपुर की परंपरा में रास-लीलाओं एवं भंगी का अत्यधिक विकास हुआ, तथापि, इन्होंने अपने पारम्परिक धार्मिक नृत्यों को नहीं छोड़ा, फलस्वरूप मणिपुरी नर्तन में दोनों धाराएं मौजूद हैं।
मणिपुरी नर्तन के वर्तमान स्वरूप एवं वर्तमान वेशभूषा की परिकल्पना का श्रेय 18वीं शती के राजा भाग्यचंद्र को दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, महाराज ने स्वप्न में कृष्ण एवं गोपियों का दिव्य स्वरुप एवं अद्भुत नर्तन देखा था। राजा भाग्यचंद्र ने " गोबिंद संगीत लीला विलास " नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो नृत्य से सम्बद्ध है।
Manipuri Dance Technique (तकनीक)
मणिपुरी नृत्य की सबसे बड़ी विशेषता जो इसे अन्य नृत्य शैलियों से अलग करती है वो है इसकी बहावपूर्ण गतियाँ (fluid movements), यह लास्य अंग का नृत्य है अतः इसमें सभी अंगों का सामान महत्व है। हाथ, पैर, गर्दन, कमर इन सब का सञ्चालन एक साथ होता है। पार्श्व का ज्यादा चलन है और ये चलन गोलाकार है। हाथ का चलन एक दूसरे में लय होता है अर्थात एक का चलन ख़त्म होते-होते दूसरे का शुरू होता है। नृत्य के बोल पर केवल हाथ पैर का ही नहीं पूरे शरीर का सञ्चालन होता है।
तांडव तथा लास्य के किसी भी प्रकार में नितम्बों का चलन नहीं होता है। नृत्य की गतियों में 8 की आकृति (figure of eight) बहुत महत्त्वपूर्ण है। ज़मीन पर पैर रखते समय एड़ी अथवा पूरा तलवा रखने के बजाय पैर के अंगूठे से स्पर्श करते हैं। इस नृत्य शैली में कुंचित पाद एवं अग्रतल सञ्चर का प्रयोग अधिक देखने को मिलता है।
उत्प्लवन एवं भ्रमरी के कुछ प्रकार ऐसे हैं जिनके नाम तो एक हैं किंतु स्त्री पात्र एवं पुरुष पात्र के करने का ढंग अलग होता है। स्त्री पात्र के लिए कूल्हे का चलन (movement) वर्जित है।
Performance (प्रस्तुति)
मणिपुरी नृत्य में "भंगी" की रचना पारम्परिक होती है। इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता है ना ही इसका प्रदर्शन मंच पर किया जाता है। इसे धार्मिक नृत्य मानकर इसका प्रदर्शन मंडपों में ही करते हैं। भंगी की पांच पारम्परिक रचनायें हैं। जिसमे तीन लास्य की और दो ताण्डव की हैं। तांडव के अन्तर्गत गुंठ न एवं चलन आते हैं। गुंठन में पैर के दोनों घुटने पास में रहते हैं, चलन में दोनों घुटने बहार की और मुड़े हुए खुली अवस्था में रहते हैं। यह प्रायः पुरुषों द्वारा मृदंग और करताल की संगत में किया जाता है।
Manipuri Dance Rhythm System (ताल पद्धति)
मणिपुरी नृत्य में प्रयुक्त होने वाली ताल पद्धति एवं बोल, भारत में प्रचलित अन्य ताल पद्धतियों यथा दक्षिण भारतीय, उत्तर भारतीय तथा ओड़िसी संगीत की पद्धतियों से अत्यंत भिन्न है। इसमें तीन प्रकार के ताल होते हैं शुद्ध, सालग एवं संकीर्ण।
शुद्ध : इसमें केवल एक ताल होता है।
सालग : इसमें दो तालों के मिश्रण से एक ठेका बनता है।
संकीर्ण : इसमें दो से अधिक तालों के मिश्रण से एक ठेका बनता है।
इस पद्धति की विशेषता यह है कि अधिकतर एक आइटम में ही दो या तीन तालों का समावेश सामान्य रूप से देखा जा सकता है। 4 से लेकर 68 ताल प्रचार में हैं लेकिन कुछ ताल मौसम विशेष में ही प्रयुक्त होते हैं। ताल का बोल जब सम पर ख़त्म न करके ताल की दूसरी ताली पर ख़त्म किया जाता है तब "वर्धमान" कहलाता है। इसी प्रकार ताल की अंतिम ताली के साथ बोल की समाप्ति "हीयमान" और पहली ताली के साथ बोल की समाप्ति को "समावर्तन" कहा जाता है। इस पद्धति में ताल की 8 जातियां हैं। यहां मात्रा के स्थान पर अक्षर काल का महत्त्व है। ये ताल की 8 जातियां निम्न प्रकार से हैं।
1 . एकांकी - एक अक्षर काल
2 . पक्षिणी - दो अक्षर काल
3 . त्रस्य - तीन अक्षर काल
4 . चतुश्र - चार अक्षर काल
5 . खण्ड - पाँच अक्षर काल
6 . ऋतु - छः अक्षर काल
7 . मिश्र - सात अक्षर काल
8 . संकीर्ण - आठ अक्षर काल
मणिपुरी ताल पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमें ताल के नाम से जितनी तालियों का बोध होगा उतनी ही तालियों का समावेश भी होगा। उदहारण के लिए तीन ताली में तीन बार ताली आती है और चार ताल में चार बार। यह बात ध्यान देने योग्य है की यहाँ चारताल चौताल से भिन्न है। प्रयोग में आने वाले अन्य तालों के नाम हैं रूपक, चौबा, राजमेल, त्रिपुट-सावनी, तेवड़ा, मेकुंप, दशकोष और सूरफ़ाक्क।
Manipuri Dance Costume (वेशभूषा)
मणिपुरी नृत्य शैली में स्त्रियों का परिधान दो प्रकार का होता है।
1. पारम्परिक : जो की प्रायः प्राचीन मणिपुरी नृत्य प्रकार को करते समय पहना जाता है। इसमें मणिपुर के नियमित परिधान की रंगीन आड़ी धारियों वाली लुंगी पहन कर कमर पर सफ़ेद फेंटा बांधते हैं। ब्लाउज़ के ऊपर चुन्नी को कंधे से कमर पर तिरछा बाँध कर कमर पर गाँठ लगते हैं। कभी कभी सिर पर से पूरा ओढते हैं। पारम्परिक आभूषण पहने जाते हैं। "माईबी जागोई " में सफ़ेद परिधान ही पहना जाता है।
2. आधुनिक : मणिपुरी नृत्य में पहना जाने वाला दूसरा परिधान अत्यंत विशिष्ट एवं आकर्षक है। स्त्री पात्र टिकलियों से टंका हुआ विशेष प्रकार का लहँगा पहनती हैं। कमर से घुटनों की ऊंचाई तक लहंगे के ऊपर घेरदार फ्रॉक नुमा महीन सफ़ेद वस्त्र पहनती हैं। ये बह गोटे से सजा होता है। इस घेर के ऊपर कमर पर टिकली एवं से टंकी हुई चौड़ी पट्टियां लटकती हैं। सर पर से पारदर्शी चुन्नी भी ओढ़ी जाती है जो कभी-कभी पूरे चेहरे को ढांकते हुए ओढ़ा जाता है तो कभी आधा चेहरा ही ढँका जाता है। पारम्परिक आभूषण पहने जाते हैं, गले में रेशम की माला भी पहनी जाती है। यह वेशभूषा प्रायः रास नृत्यों में पहनी जाती है।
कृष्ण की वेशभूषा
कृष्ण की वेशभूषा में नर्तक टखनों तक की धोती पहनते हैं। कमर पर दोनों तरफ तथा सामने गोटे से सजी हुई चौड़ी पट्टियां लगायी जाती हैं। सर पर मुकुट पहना जिसमे मोर पंख लगा होता है। मुकुट से सटी हुई सफ़ेद कतरनों की घनी चोटी कमर की ऊंचाई तक पीठ पर झूलती है। इनके आभूषण भी पारम्परिक होते हैं। गले में रेशम की माला पहनी जाती है।
ऐसी मान्यता है कि, राजा भाग्यचंद्र सपने में जैसा वेश देखा था उसी आधार पर इस आकर्षक परिधान की परिकल्पना की गयी है। वैष्णव संप्रदाय के प्रभाव से तिलक नाक पर लगाया जाता है।
पारम्परिक नृत्यों में पुरुष टखनो तक धोती पहन कर कमर पर फेंटा बांधते हैं। धोती सफ़ेद या फूलदार छापे की होती है। सिर पर कभी-कभी सफ़ेद पगड़ी भी बांधते हैं।
Manipuri Dance Items of performance (कार्यक्रम के अंश)
मणिपुरी नृत्य शैली में पारम्परिक धार्मिक नृत्य तथा रास एवं संकीर्तन (वैष्णव संप्रदाय के प्रभाव से विकसित) दोनों की विविधता देखने को मिलती है। इस नृत्य शैली में एकल एवं समूह दोनों प्रकार के नृत्य किये जाते हैं। मणिपुरी नृत्य के कुछ अंशों के बारे में नीचे बताया गया है।
1. माईबी जागोई : यह "लाइ हरोबा" के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है। इसमें माईबी अर्थात आराधिका (पुजारिन) ग्राम्य देवताओं / गृह देवताओं का आह्वाहन करती है। साथ ही हस्त-मुद्राओं तथा शारीरिक भंगिमाओं के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति, मानव शरीर की रचना, विविध मानवीय क्रिया-कलाप, जैसे कपड़ा बुनना या गृह निर्माण आदि नृत्य द्वारा प्रस्तुत करती है।
2. मृदंग चलन : मणिपुर के लोक जीवन में संकीर्तन का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। मृदंग चलन इस संकीर्तन का अपरिहार्य अंग है। इसमें मृदंग बजाकर उसके साथ कठिन ताल एवं लयकारी करते हुए विभिन्न प्रकार के अंग चलन करते हैं।
3. खुबक ईशेई : मणिपुर में विभिन्न उत्सवों पर कई प्रकार के नृत्य होते हैं जैसे 15 दिन की होली पर ढोल, ढोलक एवं खंजरी के साथ नृत्य, रथयात्रा उत्सव पर ताली के साथ नृत्य, दुर्गोत्सव पर तलवार एवं भालों के साथ नृत्य तथा झूलन-यात्रा उत्सव पर मंजीरे के साथ नृत्य। ताली के साथ किया जाने वाला नृत्य "करताली" कहलाता है। "चोलम" एवं "करताली" शुद्ध नृत्य के अंतर्गत आते हैं क्योंकि इसमें किसी गीत का आधार नहीं होता। और अभिनय भी नहीं होता है।
4. रास : ये नृत्य समूह में किये जाते हैं। इनमे नृत्य एवं अभिनय दोनों का समावेश होता है। कहा जाता है कि महाराजा भाग्यचंद्र ने वसंत-रास, कुञ्ज-रास एवं महारास की रचना की थी एवं नित्य-रास की रचना महाराज चंद्र कीर्ति ने की थी। इनकी विशेषता यह है कि ये रास करने के पर्व एवं मौसम निश्चित होते हैं। जैसे- होली की पूर्णिमा पर वसंत-रास, राखी पूर्णिमा पर कुञ्ज-रास एवं कार्तिक पूर्णिमा पर महारास किया जाता हैं।
मणिपुरी नृत्य को रंगमंच के अनुरूप ढालने का श्रेय गुरु श्री विपिन सिंह को जाता है। इन्होने अपनी शिष्याओं, झावेरी बहनों के साथ मिलकर इस नृत्य को प्रसिद्धि दिलाई है। इन्होने देश विदेश में बहुत भ्रमण किया है। मणिपुरी नृत्य शैली के प्रचार-प्रसार हेतु इन्होने "मणिपुरी नर्तनालय" नामक संस्था की स्थापना मुंबई, कोलकाता तथा मणिपुर में की। संस्था में नृत्य प्रशिक्षण के साथ ही शोध कार्य, प्रकाशन एवं मंच प्रदर्शन की ओर पूरा ध्यान दिया जाता है। मणिपुरी नृत्य शैली के प्रचार में अभूतपूर्व योगदान हेतु गुरु विपिन सिंह को सन 1965 में संगीत नाटक एकेडमी की तरफ से सम्मानित किया गया।
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