कुचिपुड़ी नृत्य कुचिपुड़ी भक्तिधारा से निकली एक शास्त्रीय नृत्य शैली है। यह भारत के आंध्र प्रदेश से सम्बंधित मानी जाती है, हालांकि वर्तमान समय में समस्त भारतवर्ष और दुनिया के कई हिस्सों में इस शैली को जाना जाता है परन्तु इसका मूल दक्षिण भारत ही है। कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति किस समय हुई इसके विषय में कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है परन्तु ऐसी मान्यता है कि, 18वीं शती में भक्तिवाद के प्रचार के साथ ये अस्तित्व में आया। उस समय जनसामान्य के बीच प्रचलित संगीत में भजन, कीर्तन, हरिकथा, कालक्षेप इत्यादि की ही कड़ी में कुचिपुड़ी भी लोगों तक संगीत और आध्यात्म के मिले जुले माध्यम के रूप में पंहुचा होगा ऐसी मान्यता है। कुचिपुड़ी नृत्य के विकास में श्री तीर्थ नारायण यति और उनके शिष्य सिद्धेन्द्र योगी का अत्यंत महत्तवपूर्ण योगदान है।तीर्थ नारायण बचपन से ही नृत्य-सगीत के शौक़ीन थे और वे भगवान् श्री कृष्ण के भक्त भी थे। उन्हें भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं का गान करना अच्छा लगता था। उन्होंने एक म्यूजिकल ओपेरा की रचना की जिसका नाम कृष्ण लीला तरंगिणी रखा। अपने कुछ शिष्यों को उन्होंने प्रशिक्षण दिया और मंदिर म
जो मशहूर हुए सिर्फ उन्होंने ही तो महोब्बत नहीं कि "साहब"....
ReplyDeleteकुछ लोग चुपचाप भी तो क़त्ल हुए हैं इश्क़ में..!!!
ज़रूरी तो नहीं कि सब कुछ हासिल ही हो जाए....
ReplyDeleteकुछ लोग ना मिल कर भी दिल में आख़री साँस तक धड़कते है...!!!
आप जिनके अफ़साने पढ़कर रो देते हैं,
ReplyDeleteसोचो उन किरदारों पर क्या गुज़री होगी।
तेरी खुशबू, तेरी चाहत, तेरी यादें लाये हैं.. आज फिर मेरे शहर में बादल आये हैं..!!
ReplyDeleteकाले और गोरे दोनो रंगों पर कहर है,
ReplyDeleteवो थोड़ी सांवली है मगर जहर है..!!
❤️❤️❤️
आके बस जाओ तुम उस शहर में...
ReplyDeleteजिस शहर में हें मेरा ठिकाना...
घर बना लो तुम मेरे दिल में...
ये दिल है अब तेरा दीवाना...