गुनाह
क्या ख़्वाबों का रंगीन होना गुनाह है
या इंसानों का जहीन होना गुनाह है
कायरता समझते है लोग मधुरता को
क्या जुबान का शालीन होना गुनाह है
खुद का नजर लग जाती है
क्या हसरतों का हसीन होना गुनाह है
लोग इस्तेमाल करते है नमक की तरह
क्या आसुओं का नमकीन होना है
दुस्मनी हो जाती है सैकड़ों से
क्या इंसान का बेहतरीन होना गुनाह है
लोग जल जाते है निहार कर जोड़ें को
क्या उनका संगीन होना गुनाह है
सुनील गावस्कर
This is really beautiful,well written,nice poetry
ReplyDeletethanks for your valuable comment
DeleteBeautiful poetry
ReplyDeleteBeautiful poetry
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