मत जाना हमारे चेहरे की खामोशी पर हम ज़ेहन में तूफान लिए फिरते हैं। हक़ीकत जानते हैं हर बदलते चेहरे की नज़र मे आईनों की दुकान लिए फिरते हैं। यूँ तो खड़े हैं बुजुर्गियत के दर पर मगर दिल में बचपन के कुछ अरमान लिए फिरते हैं। उनसे कह दो न सिखाएँ हमे जिंदगी का हुनर जो खुद चेहरा बेजान लिए फिरते हैं। इश्क-ओ-अमन की बात हो तो आओ बैठो कुछ देर ना आएँ वो जो नफरतों का सामान लिए फिरते हैं। कई मुल्कों में घर बना लिया, बड़े रईस हो तुम हम तो दुनियाँ भर में हिन्दुस्तान लिए फिरते हैं। सुनो कोई ऐरा गैरा न समझ लेना हमे तुम हम शायर हैं लफ्ज़ों में सारा ज़हान लिए फिरते हैं।
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